["जब परम रहस्यमय उपदेश दिया जा रहा हो , उसे श्रवण करो . अविचल , अपलक आँखों से ; अविलम्ब परम मुक्ति को उपलब्ध होओ ."]
इसका मतलब है कि मन निर्विचार हो , शांत हो . पलक भी नहीं हिले ; क्योंकि पलक का हिलना आंतरिक अशांति का लक्षण है . जरा सी गति भी न हो . केवल कान बन जाओ ; भीतर कोई भी हलचल न रहे . और तुम्हारी चेतना निष्क्रिय , खुली ग्राहक की अवस्था में रहे--गर्भधारण करने की अवस्था में . जब ऐसा होगा , जब वह क्षण आयेगा जिसमें तुम समग्रतः रिक्त होते हो , निर्विचार होते हो , प्रतीक्षा में होते हो--किसी चीज की प्रतीक्षा में नहीं , क्योंकि वह विचार करना होगा , बस प्रतीक्षा में--जब यह अचल क्षण , ठहरा हुआ क्षण घटित होगा , जब सब कुछ ठहर जाता है , समय का प्रवाह बंद हो जाता है और चित्त समग्रतः रिक्त है , तब अ-मन का जन्म होता है . और अ-मन में ही गुरु उपदेश प्रेषित करता है .
विधि 33
विधि 34
विधि 35
विधि 36
विधि 37
विधि 38
विधि 39
विधि 40
|
विधि 41
विधि 42
विधि 43
विधि 44
विधि 45
विधि 46
विधि 47
विधि 48
विधि 49
विधि 50
|
विधि 51
विधि 52
विधि 53
विधि 54
विधि 55
विधि 56
विधि 57
विधि 58
विधि 59
विधि 60
|
विधि 61
विधि 62
विधि 63
विधि 64
विधि 65
विधि 66
विधि 67
विधि 68
विधि 69
विधि 70
|
विधि 71
विधि 72
विधि 73
विधि 74
विधि 75
विधि 76
विधि 77
विधि 78
विधि 79
विधि 80
|
विधि 81
विधि 82
विधि 83
विधि 84
विधि 85
विधि 86
विधि 87
विधि 88
विधि 89
विधि 90
|
विधि 91
विधि 92
विधि 93
विधि 94
विधि 95
विधि 96
विधि 97
विधि 98
विधि 99
विधि 100
|
विधि 101
विधि 102
विधि 103
|
विधि 104
विधि 105
विधि 106
|
विधि 107
विधि 108
विधि 109
|
विधि 110
विधि 111
विधि 112
|