(" किसी विषय को प्रेमपूर्वक देखो ; दूसरे विषय पर मत जाओ . यहीं विषय के मध्य में - आनंद .")
क्या तुमने कभी किसी चीज को प्रेमपूर्वक देखा है ? तुम हाँ कह सकते हो , क्योंकि तम नहीं जानते कि किसी चीज को प्रेमपूर्वक देखने का क्या अर्थ होता है . तुमने किसी चीज को लालसा भरी आँखों से देखा होगा , कामनापूर्वक देखा होगा .वह दूसरी बात है . वह बिलकुल भिन्न , विपरीत बात है . पहले इस भेद को समझो . " दूसरे विषय पर मत जाओ ..." दूसरे विषय पर मत जाओ , एक के साथ ही रहो . गुलाब के फूल के साथ या अपनी प्रेमिका के चेहरे के साथ रहो . और उसके साथ प्रेमपूर्वक रहो , प्रवाहमान रहो , समग्र हृदय से उसके साथ रहो . और इस विचार के साथ रहो कि मैं अपनी प्रेमिका को ज्यादा सुखी और आनंदित बनाने के लिए क्या कर सकता हूँ .
" यहीं विषय के मध्य में-- आनंद ." और जब ऐसी स्थिति बन जाए कि तुम अनुपस्थित हो , अपनी फ़िक्र नहीं करते , अपने सुख-संतोष की चिंता नहीं लेते , अपने को पूरी तरह भूल गए हो , जब तुम सिर्फ दूसरे के लिए चिंता करते हो , दूसरा तुम्हारे प्रेम का केन्द्र बन गया है , तुम्हारी चेतना दूसरे में प्रवाहित हो रही है , जब गहन करुणा और प्रेम के भाव से तुम सोचते हो कि मै अपनी प्रेमिका को आनंदित करने के लिए क्या कर सकता हूँ , तब इस स्थिति में अचानक , " यहीं विषय के मध्य में - आनंद" ,अचानक उप-उत्पत्ति की तरह तुम्हें आनंद उपलब्ध हो जाता है . तब अचानक तुम केंद्रित हो गए .
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