(" भृकुटियों के बीच अवधान को स्थिर कर विचार को मन के सामने करो. फिर सहस्रार तक रूप को प्राण-तत्व से, प्राण से भरने दो. वहां वह प्रकाश की तरह बरसेगा.")
यह विधि एकाग्र होने की सबसे सरल विधियों में से है. शरीर के किसी दूसरे भाग में इतनी आसानी से तुम अवधान को नहीं उपलब्ध हो सकते. यह ग्रंथि अवधान को अपने में समाहित करने में कुशल है. यदि तुम इस पर अवधान दोगे तो तुम्हारी दोनों आँखें तीसरी आँख से सम्मोहित हो जाएँगी. वे थिर हो जाएंगी, वे वहां से नहीं हिल सकेंगी. यदि तुम शरीर के किसी दूसरे हिस्से पर अवधान दो तो वहां कठिनाई होगी. तीसरी आँख अवधान को पकड़ लेती है, अवधान को खींच लेती है. अवधान के लिए यह चुंबक का काम करती है. इसलिए दुनियां भर की सभी विधियों में इसका समावेश किया गया है. अवधान को प्रशिक्षित करने में यह सरलतम है, क्योंकि इसमें तुम ही चेष्टा नहीं करते, यह ग्रंथि भी तुम्हारी मदद करती है. यह चुम्बकीय है. तुम्हारे अवधान को यह बलपूर्वक खींच लेती है. तंत्र के पुराने ग्रंथों में कहा गया है कि अवधान तीसरी आँख का भोजन है. यह भूखी है; जन्मों-जन्मों से भूखी रही है. जब तुम इसे अवधान देते हो यह जीवित हो उठती है. इसे भोजन मिल गया है. और जब तुम जान लोगे कि अवधान इसका भोजन है, जान लोगे कि तुम्हारे अवधान को यह चुंबक की तरह खींच लेती है, तब अवधान कठिन नहीं रह जायेगा. सिर्फ सही बिंदु को जानना है.
विधि 33
विधि 34
विधि 35
विधि 36
विधि 37
विधि 38
विधि 39
विधि 40
|
विधि 41
विधि 42
विधि 43
विधि 44
विधि 45
विधि 46
विधि 47
विधि 48
विधि 49
विधि 50
|
विधि 51
विधि 52
विधि 53
विधि 54
विधि 55
विधि 56
विधि 57
विधि 58
विधि 59
विधि 60
|
विधि 61
विधि 62
विधि 63
विधि 64
विधि 65
विधि 66
विधि 67
विधि 68
विधि 69
विधि 70
|
विधि 71
विधि 72
विधि 73
विधि 74
विधि 75
विधि 76
विधि 77
विधि 78
विधि 79
विधि 80
|
विधि 81
विधि 82
विधि 83
विधि 84
विधि 85
विधि 86
विधि 87
विधि 88
विधि 89
विधि 90
|
विधि 91
विधि 92
विधि 93
विधि 94
विधि 95
विधि 96
विधि 97
विधि 98
विधि 99
विधि 100
|
विधि 101
विधि 102
विधि 103
|
विधि 104
विधि 105
विधि 106
|
विधि 107
विधि 108
विधि 109
|
विधि 110
विधि 111
विधि 112
|