(" मन को भूलकर मध्य में रहो -- जब तक.")
इसे प्रयोग में लाओ यह सूत्र तुम्हारे पूरे जीवन के लिए है . ऐसा नहीं है कि उसका अभ्यास यदा-कदा कर लिया और बात खत्म हो गई . तुम्हें निरंतर इसका बोध रखना होगा , होश रखना होगा . काम करते हुए , चलते हुए भोजन करते हुए , संबंधों में , सर्वत्र मध्य में रहो . प्रयोग करके देखो और तुम देखोगे कि एक मौन , एक शान्ति तुम्हें घेरने लगी है और तुम्हारे भीतर एक शांत केन्द्र निर्मित हो रहा है . अगर ठीक मध्य में होने में सफल न हो सको तो भी मध्य में होने की कोशिश करो . धीरे-धीरे तुम्हें मध्य की अनुभूति होने लगेगी . जो भी हो , घृणा या प्रेम , क्रोध या पश्चाताप , सदा ध्रुवीय विपरीतताओं को ध्यान में रखो और उनके बीच में रहो . और देर-अबेर तुम मध्य को पा लोगे . और एक बार तुमने इसे जान लिया तो फिर तुम उसे नहीं भूलोगे . क्योंकि मध्य बिंदु मन के पार है . और वह मध्य बिंदु आध्यात्म का सार-सूत्र है .
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