[" आंखें बंद करके अपने अंतरस्थ अस्तित्व को विस्तार से देखो ."]
इसमें अभ्यास की जरूरत पड़ेगी-- एक लंबे अभ्यास की जरूरत पड़ेगी . यह अचानक संभव नहीं है ;एक लंबे प्रशिक्षण की जरूरत है . आंखें बंद कर लो . जब भी तुम्हें लगे कि यह आसानी से किया जा सकता है और जब भी तुम्हें समय हो तब आंखें बंद कर लो और आँखों की सभी भीतरी हलन-चलन को भी बंद कर दो . किसी तरह की भी गति मत होने दो . आँखों की सारी गतियां बंद हो जानी चाहिए . भाव करो कि आंखें पत्थर हो गई हैं , और तब आँखों की पथराई अवस्था में ठहरे रहो . कुछ भी मत करो ; मात्र स्थित रहो . तब किसी दिन अचानक तुम्हें यह बोध होगा कि तुम अपने भीतर देख रहे हो . इसका अभ्यास करते हुए किसी दिन अचानक , हठात तुम अपने अंदर देखने में समर्थ हो जाओगे . वे आंखें जो सतत बाहर देखने की आदी थीं भीतर को मुड़ जाएंगी और तुम्हें अपने अंतरस्थ की एक झलक मिल जायेगी . और तब कोई कठिनाई नहीं रहेगी . एक बार तुम्हें अंतरस्थ की झलक मिल गई तो तुम जानते हो कि क्या किया जाए और कैसे गति की जाए . पहली झलक ही कठिन है . उसके बाद तुम्हें तरकीब हाथ लग गई .
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