(" या जब श्वास पूरी तरह बाहर गई है और स्वतः ठहरी है , या पूरी तरह भीतर आई है और ठहरी है -- ऐसे जागतिक विराम के क्षण में व्यक्ति का क्षुद्र अहंकार विसर्जित हो जाता है . केवल अशुद्ध के लिए यह कठिन है .
लेकिन तब तो यह विधि सबके लिए कठिन है , क्योंकि शिव कहते हैं कि " केवल अशुद्ध के लिए यह कठिन है ." लेकिन कौन शुद्ध है ? तुम्हारे लिए यह कठिन है ; तुम इसका अभ्यास नहीं कर सकते . लेकिन कभी अचानक इसका अनुभव तुम्हें हो सकता है . तुम कार चला रहे हो ओर अचानक तुम्हें लगता है कि दुर्घटना होने जा रही है . श्वास बंद हो जायेगी . अगर वह बाहर है तो बाहर ही रह जायेगी , भीतर है तो भीतर ही रह जायेगी. ऐसे संकटकाल में तुम श्वास नहीं इ सकते; तुम्हारे बस में नहीं है. सब कुछ ठहर जाता है, विदा हो जाता है.
तुम्हारा क्षुद्र अहंकार दैनिक उपयोगिता की चीज है. संकट की घडी में तुम उसे नहीं याद रह सकते. तुम जो भी हो, नाम, बैंक बैलेंस, प्रतिष्ठा, सब काफूर हो आता है. तुम्हारी कार दूसरी कार से टकराने जा रही है; एक क्षण, और मृत्यु हो जायेगी. इस क्षण में एक विराम होगा, अशुद्ध के लिए भी विराम होगा. ऐसे क्षण में अचानक श्वास बंद हो जाती है. और उस क्षण में अगर तुम बोधपूर्ण हो सके तो तुम उपलब्ध हो जाओगे.
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