(" मृतवत लेट रहो . क्रोध से क्षुब्ध होकर उसमें ठहरे रहो . या पुतलियों को घुमाए बिना एकटक घूरते रहो . या कुछ चूसो और चूसना बन जाओ .")
यह ठहरना बहुत सुंदर है . अगर तुम कुछ मिनटों के लिए भी ठहर गए तो पाओगे कि सब कुछ बदल गया . लेकिन हम हिलने लगते हैं . यदि मन में कोई आवेग उठता है तो शरीर हिलने लगता है . उदासी आती है तो भी शरीर हिलता है . इसे आवेग इसीलिए कहते हैं कि यह शरीर में वेग पैदा करता है . मृतवत महसूस करो और आवेगों को शरीर हिलाने की इजाजत मत दो . वे भी वहां रहें और तुम भी ठहरे रहो-- स्थिर , मृतवत . कुछ भी हो , पर हलचल नहीं हो ,गति नहीं हो . बस , ठहरे रहो .
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