("जब किसी व्यक्ति के पक्ष या विपक्ष में कोई भाव उठे तो उसे उस व्यक्ति पर मत आरोपित करो , बल्कि केंद्रित रहो .")
इस विधि के लिए विशेष रूप से इस बात को ध्यान में रख लो कि दूसरों पर तुम जो भी भाव प्रक्षेपित करते हो उसका स्रोत सदा तुम्हारे भीतर है . इसलिए जब भी कोई भाव पक्ष या विपक्ष में उठे तो तुरंत भीतर प्रवेश करो और उस स्रोत के पास पहुँचो जहाँ से यह भाव उठ रहा है . स्रोत पर केंद्रित रहो , विषय की चिंता ही छोड़ दो . किसी ने तुम्हे तुम्हारे क्रोध को जानने का मौका दिया है , उसके लिए उसे तुरंत धन्यवाद दो और उसे भूल जाओ . फिर आँखें बंद कर लो और अपने भीतर सरक जाओ . और उस स्रोत पर ध्यान दो जहाँ से यह प्रेम और क्रोध का भाव उठ रहा है . भीतर गति करने पर तुम्हें वह स्रोत मिल जायेगा , क्योंकि ये भाव उसी स्रोत से आते है . घृणा हो या प्रेम , सब तुम्हारे स्रोत से आता है . इस स्रोत के पास उस समय पहुंचना आसान है जब तुम क्रोध या प्रेम या घृणा सक्रिय रूप से अनुभव करते हो . इस क्षण में भीतर प्रवेश करना आसान होता है . जब तार गर्म है तो उसे पकड़कर भीतर जाना आसान होता है . और भीतर जाकर जब तुम एक शीतल बिंदु पर पहुंचोगे तो अचानक एक भिन्न आयाम , एक दूसरा ही संसार सामने खुलने लगता है .
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