( " जब श्वास नीचे से ऊपर की ओर मुड़ती है , और फिर जब श्वास ऊपर से नीचे की ओर मुड़ती है -- इन दो मोड़ों के द्वारा उपलब्ध हो . " )
थोड़ फर्क के साथ यह वही विधि है , जोर अब अंतराल पर न होकर मोड़ पर है . बाहर जाने वाली ओर अंदर आने वाली श्वास एक वर्तुल बनाती हैं . याद रहे , वे समानांतर रेखाओं की तरह नहीं हैं . हम सदा सोचते हैं कि आने वाली श्वास और जाने वाली श्वास दो समानांतर रेखाओं की तरह हैं . मगर वे ऐसी हैं नहीं . भीतर आने वाली श्वास आधा वर्तुल बनाती है और शेष आधा वर्तुल बाहर जाने वाली श्वास बनाती है .
इसलिए पहले यह समझ लो कि श्वास और प्रश्वास मिलकर एक वर्तुल बनातीं हैं . और वे समानांतर रेखाएं नहीं है ; क्योंकि समानांतर रेखाएं कहीं नहीं मिलती हैं . दूसरा यह कि आने वाली और जाने वाली श्वास दो नहीं है , वे एक हैं . वही श्वास जो भीतर आती है , बाहर भी जाती है . इसलिए भीतर उसका कोई मोड़ अवश्य होगा ; वह कहीं जरूर मुड़ती होगी . कोई बिंदु होगा , जहाँ आने वाली श्वास जाने वाली श्वास बन जाती होगी .
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