विज्ञान भैरव तंत्र - विधि 34



["किसी गहरे कुएं के किनारे खड़े होकर उसकी गहराइयों में निरंतर देखते रहो -- जब तक विस्मय-विमुग्ध न हो जाओ ."]

किसी गहरे कुएं में देखो ; कुआं तुममें प्रतिबिंबित हो जाएगा . सोचना बिलकुल भूल जाओ ; सोचना बिलकुल बंद कर दो ; सिर्फ गहराई में देखते रहो . अब वे कहते हैं कि कुएं की भांति मन की भी अपनी गहराई है . अब पश्चिम में वे गहराई का मनोविज्ञान विकसित कर रहे हैं . वे कहतें हैं कि मन कोई सतह पर ही नहीं है , वह उसका आरम्भ भर है . उसकी गहराइयां हैं , अनेक गहराइयां हैं , छिपी गहराइयां हैं . किसी कुएं में निर्विचार होकर झाँकों ; गहराई तुममें प्रतिबिंबित हो जायेगी . कुआं भीतरी गहराई का बाह्य प्रतीक बन जाएगा . और निरंतर झांकते जाओ-- जब तक कि तुम विस्मय-विमुग्ध न हो जाओ . जब तक ऐसा क्षण न आये , झांकते ही चले जाओ , झांकते ही चले जाओ . दिनों , हफ्तों , महीनों झांकते रहो . किसी कुएं पर चले जाओ , उसमें गहरे देखो . लेकिन ध्यान रहे कि मन में सोच-विचार न चले . बस ध्यान करो , गहराई में ध्यान करो . गहराई के साथ एक हो जाओ--ध्यान जारी रखो .किसी दिन तुम्हारे विचार विसर्जित हो जाएंगे . यह किसी क्षण भी हो सकता है . अचानक तुम्हें प्रतीत होगा कि तुम्हारे भीतर भी वही कुआं है , वही गहराई है . और तब एक अजीब , बहुत अजीब भाव का उदय होगा , तुम विस्मय-विमुग्ध अनुभव करोगे . जब तुम विस्मय-विमुग्ध हो जाओगे , जब तुम्हारे ऊपर रहस्य का अवतरण होगा , जब मन नहीं बचेगा , केवल रहस्य और रहस्य का माहौल बचेगा , तब तुम स्वयं को जानने में समर्थ हो जाओगे .


विधि 33
विधि 34
विधि 35
विधि 36
विधि 37
विधि 38
विधि 39
विधि 40
विधि 41
विधि 42
विधि 43
विधि 44
विधि 45
विधि 46
विधि 47
विधि 48
विधि 49
विधि 50

विधि 51
विधि 52
विधि 53
विधि 54
विधि 55
विधि 56
विधि 57
विधि 58
विधि 59
विधि 60
विधि 61
विधि 62
विधि 63
विधि 64
विधि 65
विधि 66
विधि 67
विधि 68
विधि 69
विधि 70
विधि 71
विधि 72
विधि 73
विधि 74
विधि 75
विधि 76
विधि 77
विधि 78
विधि 79
विधि 80
विधि 81
विधि 82
विधि 83
विधि 84
विधि 85
विधि 86
विधि 87
विधि 88
विधि 89
विधि 90
विधि 91
विधि 92
विधि 93
विधि 94
विधि 95
विधि 96
विधि 97
विधि 98
विधि 99
विधि 100
vigyan bhairav tantra vidhi 112 pdf
विधि 101
विधि 102
विधि 103

विधि 104
विधि 105
विधि 106

विधि 107
विधि 108
विधि 109

विधि 110
विधि 111
विधि 112